भारतीय संस्कृति में सनातन काल से नारी को सबला का दर्जा दिया जाता रहा है। वह सबला है भी, लेकिन वर्तमान में भारतीय समाज के कुछ व्यभिचारी लोगों ने इस परिभाषा को पूरी तरह से बदलने का मन बना लिया है। उसे अबला बनाने पर तुले हुए हैं। ऐसे लोग निश्चित ही भारतीय संस्कृति को मिटाने का ही कार्य करते हुए दिखाई दे रहे हैं। अभी हैदराबाद में एक प्रतिभावान चिकित्सक युवती के साथ समाज के बीच रहने वाले दरिन्दों ने जो कृत्य किया है, वह अत्यंत ही निंदनीय तो है ही, साथ ही शर्मसार कर देने वाला भी है। जिस देश में नारी को देवी का दर्जा दिया जाता हो, उस देश में उसी देवी के साथ घिनौना कृत्य हो जाए, यह निश्चित ही हमारे समाज के लिए अत्यंत ही गंभीर बात है। सबसे ज्यादा गंभीर स्थिति तो यह है कि ऐसे मामलों में राजनीतिक नफा नुकसान के हिसाब से विरोध और समर्थन किया जाता है। हमारे देश की सरकारें नारी सुरक्षा के नाम पर कई प्रकार के अभियान चलाती हैं, यहां तक कि दुष्कर्म करने वाले दरिन्दों के खिलाफ भी कठोर कानून बनाने की बात भी की जाती रही है, लेकिन यह बातें घटना हो जाने के बाद कुछ समय तक ही सुनाई देती हैं। बाद में देश फिर से उसी राह पर चलता हुआ दिखाई देता है, जिस रास्ते पर ऐसे गुनाह होते हैं। देश में कठोर कानून होने के बाद भी असामाजिक व्यक्ति दुष्कर्म जैसा घिनौना कृत्य करने की ओर प्रवृत हो जाते हैं। इसलिए सवाल यह आता है कि ऐसे कानून से क्या फायदा, जिसका डर ही न हो। ऐसे कानूनों की सिरे से समीक्षा होनी चाहिए।
कभी दिल्ली, कभी हैदराबाद तो कभी कोई और शहर...अबला तेरी यही कहानी